Friday, 28 June 2013

हरि हरि hari hari


हरि हरसे हरि देखकर, हरि बैठे हरि पास।

या हरि हरि से जा मिले, वा हरि भये उदास॥

(अज्ञात)


पूरे दोहे का अर्थ हैः


मेढक (हरि) को देखकर सर्प (हरि) हर्षित हो गया (क्योंकि उसे अपना 

भोजन दिख गया था)। वह मेढक (हरि) समुद्र (हरि) के पास बैठा था। 

(सर्प को अपने पास आते देखकर) मेढक (हरि) समुद्र (हरि) में कूद 

गया। (मेढक के समुद्र में कूद जाने से या भोजन न मिल पाने के 

कारण) सर्प (हरि) उदास हो गया।

Wednesday, 26 June 2013


विधना यह जिय जानि कै, सेसहिं दियें न कान |
 धरा मेरु सब डोलि हैं, तानसेन की तान ||


नाक का मोती अधर की कान्ति से

बीज दाड़िम का समझ कर भ्रान्ति से

देख कर सहसा हुआ शुक मौन है

सोचता है अन्य शुक ये कौन है |

- मैथिलि शरण गुप्त


Aja saheli ta ripu shrikrishna


अजा सहेली ता रिपु, ता जननी भरतार।

ताके सुत के मित्र को भजा करे संसार॥



अभिप्राय है ‘अजा (बकरी) की सहेली (भेड़) के शत्रु (कांटों) की मां (पृथ्वी) के स्वामी (इंद्र) के पुत्र (अर्जुन) के मित्र (श्रीकृष्ण) को सारा संसार भजता है |